Friday 15 March 2013

दबे पाँव कभी किसी को देखा किया करते थे छुप छुप के
एक जूनून था हर मौसम में उसे देखने की छुप छुप के
जेठ की दुपहरी हो या हो कुआर कार्तिक की ठण्ड 
मुहाने से  मुड़कर उसके घर जरूर जाते छुप छुप के 
न कहने की हिम्मत थी न किसी से कहलाने की
प्यार तो था पर  कह न सके किये छुप छुप के
अफ़सोस आज भी है रहेगा हमेशा अपनी नादानी पर
पर आप न करना प्यार आनंद कभी छुप छुप के ।
..............................................आनंद विक्रम .............

2 comments:

रचना दीक्षित said...

सुंदर अहसास से परिपूर्ण भावपूर्ण और संवेदनात्मक प्रस्तुति.

palash said...

aaj aapki bahut sari post padhi. sabhi bahut achchhi lagi....