Thursday 4 August 2016

अखबार बोलतें हैं 

हम नहीं कहते
अखबार बोलतें हैं
बिकी हैं सड़के
व्‍यवस्‍थॉए नीलाम हैं
सड़कों व चौराहों से हो रही
उगाही आम है
कीमत साॅसों की हो
या एहसासों की
आप बोलों तो
चन्‍द अलफाजों के भी दाम है

2 comments:

Unknown said...

अख़बारो की जगह हम बोलना चालू कर देंगे तो समस्याओं के समाधान निकल आएगें।
मगर हम कुछ बोले तो सहीं ......... कब तक मौन साधे बैठे रहेंगे।
http://savanxxx.blogspot.in

आनन्द विक्रम त्रिपाठी said...

पोस्‍ट पर आकर टिप्‍पणी करने के लिए आभार